सीकर किसान आंदोलन-

सीकर किसान आंदोलन,sikar kisan andolan 1922


किसान आंदोलन का प्रारम्भ सीकर ठिकाने के नये रावराजा कल्याणसिंघ द्वारा 25 से 50 प्रतिशत तक भू-राजस्व वृद्धि करने से हुआ 1922 ई. में उसने पूर्व रावराज के दाह-संस्कार तथा स्वयं के गद्दीनसिंघ समारोह पर अधिक खर्च का बहाना बनाकर इस वायदे पर लगान वृद्धि की अगले वर्ष लगान में रियासत दे दी जाएगी किन्तु 1923 ई रावराजा राजस्तान सेवा संग के मंत्री रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में किसान ने इसके विरुद्ध आवाज उढाए। लन्दन से परकासित होने वाले डेली  हेराजल्द नामक समाचार -पत्र में किसानो के समर्तन में लेख छपे 1925 में ब्रिटिश संसद के निचले सदन  हॉउस आफ कॉमन्स में  लिचेस्टर से लेबर संसद सर पेथिन लरेसव कॉमन्स के समर्थन में आवाज उढ़ाए। 

 1931 ई में राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा की स्थापना के बाद किसान आंदोलन को नई ऊर्जा मिली  .किसानो को धार्मिक आधार पर सगधत करने के लिए डाकुर देशराज नई निस्चय किया। बसंत पंचमी 20 जनवरी 1934 को  सीकर में यज्ञाचार्य प.खेमराज शर्मा की देखरेख में यज्ञे आरम्भ हुआ।

 यज्ञ की समाप्ति के बाद किसान यज्ञपति कु. हुक्मसिंह को हटी पर बढ़ाकर जुलुम निकालकर चाहते थे किन्तु रावराजा कल्याणसिंघ और ठिकाने के जागीरदार इसके विरुद्ध थे। 

इसका कारण यहदेखने था की ठिकाने का शासन और जागीरदार किसान को सामाजिक प्रतिस्टा ट्रस्टी से अपने से हिन मानते थे। और हाथी पर सवार होकर निकल जाने वाले जुलुम को अपना विशेषाधिकार मानते थे। इस कारण सीकर ढिकाने ने यज्ञे की पहली रत हाथी को चुरा लिया।

हाथी चुराने की घटना ने वहा उपस्थित लोगो में रोस पैदा करने का कार्य किया और माहौल तनावपूर्ण हो गया। प्रसीद किसान नेता छोटूराम ने  जयपुर महाराजा को तार द्वारा सूचित किसान नीता छोटूराम ने जयपुर महाराजा को तार द्वारा। प्रसीद किसान नेता छोटूराम ने जयपुर महाराजा को तार द्वारा सूचित किया। की एक भी किसान को कुछ हो गया तो अन्य स्थानों पर भरी नुकसान होगा और जयपुर राज को जम्भीर परिणाम भुगतने पड़ेगे।

 अंतत किसान की जिद  के  आगे सीकर ठिकाने को झुकना पड़ा और स्वयं दिकाने ने जुलुम के लिए सजा-सजाया हाथी प्रदान किया।

 सात दिन तक चलने वाले इस यज्ञे कार्येकर्म में स्थनीय लोगो सहित उत्तरप्रदेश,पंजाब,लुहारू,पटियाला और हिसार जैसे स्थनो से लगभग तीन लाख लोग उपस्थित हुए। बीसवीं शताब्दी में राजपूताने में होने वाला यह सबसे बड़ा यज्ञ था।

 सीकर किसान आंदोलन में महिलाओ की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सिरोट के ठाकुर मानसिंघ द्वारा सोतिया का बस नामक गांव में किसान महिलाओ के साथ किए गये  दुर्व्यवहार के विरोध में 25 1934ई.को कटराथल नामक स्थान पर श्रीमान किशोर देवी की अधयक्षता में एक विशाल महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया।

सीकर ठिकाने ने उक्त सम्मेलन को रोकने के लिए धारा 144 लगा दी। इसके बावजूद कानून तोड़कर महिलाओ का यह सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में बड़ी संख्या में महिलाओ ने बैग लिया।

 जिसमे श्रीमती दुर्गा देवी शर्मा ,श्रीमती फुलांदेवी श्रीमती रामदेवी जोशी श्रीमती उत्तमादेवी आदि प्रमुख  थी। 25 अप्रेल 1935 को जब राजस्व अदिकारियों का दाल लगान वसूल करने के लिए कुंदन गांव पंहुचा तो एक वृद महिला धापी दादी द्रारा उत्साहित किए जाने पर किसान ने संगठित होकर लगान देने से मन कर दिया। पुलिस द्रारा किसान के विरोध का दमन करने के लिए गोलिया chalae gee जिसमे चार किसान-चेतराम,टीकूराम,तुलछाराम,तथा आसाराम शहीद हुए और 175 को गिरफ़्तार किया गया।

 गूंज एक बार फिर ब्रिटिश संसद में सुनाए दी। 1935ई.के व अंत तक किसानो की अधिकांश मांगे स्वीकार कर ली गई आंदोलन करने वाले प्रमुख नेताओ में सरदार हरलाल सिंह,नेतराम सिंह गोरीर,पनने सिंह,बातड़ानाउ,हरु सिंह पलटना,गोरु सिंघ कटराथल,ईश्वर सिंह भैरूपुरा लेखराम कसवाली आदि शामिल थे।